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बीए सेमेस्टर-1 चित्रकला प्रथम प्रश्नपत्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2675
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 चित्रकला प्रथम प्रश्नपत्र

प्रश्न- अजन्ता की गुहा सत्रह के चित्रों का विश्लेषण कीजिए।

उत्तर -

गुहा संख्या सत्रह में उपलब्ध चित्रों का वर्णन - इस गुहा का निर्माण सोलहवीं गुहा के आसपास ही लगभग पाँच सौ ई० में किया गया था। इस गुहा के चित्रों में विविधता दिखलायी पड़ती है। यही कारण है कि इस गुहा को 'चित्रशाला' के नाम से भी जाना जाता है। इस गुहा की चित्र शैली को कथात्मक शैली कहा गया है क्योंकि इन चित्रों में भगवान बुद्ध के जीवन-मरण की कथाएँ ही चित्रित की गयी हैं। इन चित्रों को बनाने का उद्देश्य मूलतः बौद्ध धर्म को जन-साधारण के मध्य प्रचलित एवं इस ओर आकर्षित करने का रहा होगा। सभी चित्र सजीव, एक कला तत्त्व व उसके सौन्दर्य से परिपूर्ण हैं। इस गुहा के सम्यक् चित्र भावात्मकता से पूर्ण तथा कलात्मक दृष्टि से अनूठे माने गये हैं। इस गुहा में भगवान बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित भित्ति चित्रों के साथ-साथ जातक कथाओं का भी अंकन अधिक संख्या में किया गया है। सभी चित्र गुप्तकालीन महान चित्रकारों के कौशलपूर्ण अनुभूति की सच्ची अभिव्यक्ति कहे जा सकते हैं।

इस गुहा में चित्रों की संख्या तो अत्यधिक है ही साथ ही साथ इनका अंकन भी कुशलतापूर्वक एवं सधी हुई तूलिका संचालन के साथ किया गया है। इस गुहा में पागल हाथी पर अंकुश, हंसों की व्याकुलता, वैसन्तर जातक कथा, विलासी का वैराग्य, हंस जातक, मृग जातक, कपि एवं महिष, महाकपि का त्याग, कृतघ्न पर करुणा, मच्छ जातक, राक्षसियों का रूप मोह, माता-पुत्र, सिंहलावदान, शिवि जातक, मांसाहारी की शिक्षा, युगल प्रेमी, दिव्य गायक आदि अनेक चित्रों का प्रमुखता के साथ चित्रण किया गया है। इसके साथ-साथ विभिन्न प्रकार के शोभनों का भी अंकन किया गया है।

इस गुहा में एक प्रसिद्ध चित्र है जिसमें भगवान बुद्ध को महाभिनिष्क्रमण के पश्चात् बुद्धत्व प्राप्ति के उपरान्त सर्वप्रथम अपने गृह के द्वार पर भिक्षार्थ हेतु आना पड़ा। इनकी पत्नी के पास भिक्षास्वरूप राहुल को देने के अलावा और कौन-सी वस्तु हो सकती है जिसे वह दान में दे सके। अतः वह राहुल को ही भिक्षु को देने के लिए तैयार हैं। भगवान बुद्ध अपने गृह द्वार पर एक राजा की भाँति नहीं बल्कि एक भिक्षु के रूप में आये हैं, जिन्हें किसी भी तरह का माया बन्धन नहीं रहा है। इस चित्र का अंकन बड़े ही अनोखे ढंग से किया गया है। यशोधरा एवं राहुल को सामान्यतः मानव माप में ही चित्रित किया गया है किन्तु इन दोनों के समक्ष भगवान बुद्ध अपने दाहिने हाथ में भिक्षा पात्र लिए हुए अति विशाल रूप में अंकित किए गए हैं। चितेरों ने भगवान बुद्ध के मुख पर आध्यात्मिकता तथा यशोधरा के नेत्रों में श्रद्धायुक्त आत्म-त्याग एवं राहुल के मुखमण्डल पर अबोधता और भगवान बुद्ध के नेत्रों से विश्व कल्याण के निमित्त सात्विक ग्रहण के भाव को स्पष्ट रूप से चित्रित किया है। इस चित्र के दर्शन से सहानुभूति एवं करुणा भाव मानव मन में जाग्रत हो जाता है। ई० वी० हैवल महोदय ने तो इस चित्र को बोरोबुदुर से प्राप्त बौद्ध कला की समकक्षता में रखना ज्यादा पसन्द किया है। चित्रकारों ने इस चित्र में रंग एवं लयबद्ध रेखाओं का सुन्दर तालमेल बैठाया है। चित्र में भगवान बुद्ध की विशालता एवं विश्व कल्याणकारी भावों का अंकन ही इस कृति के प्राण माने जा सकते हैं।

इसी गुहा में मृग जातक कथा का अंकन किया गया है जिसमें चित्रकार ने चरित्र के उत्तम उदाहरण को दर्शकों के सम्मुख प्रस्तुत किया है। मृग जातक कथानुसार, एक बार एक सुनहरे मृग ने एक कर्ज में डूबे व्यथित व्यापारी को मंदाकिनी में आत्महत्या करने से बचा लिया और मृग ने व्यापारी से निवेदन करते हुए कहा कि इस घटना की चर्चा नगर में कहीं भी न करे। लेकिन जब व्यापारी नगर में आया तो उसे पता चला कि सुनहरे मृग का पता बताने पर वहाँ का राजा उस व्यक्ति को बहुत-सा धन देगा। अब व्यापारी का लालची मन उसके वश में न रहा और धन के लोभ में उसने सुनहरे मृग का पता राजा को बता दिया। राजा जब मृग का वध करने के लिए जंगल गया तब मृग ने राजा से मिलकर यह कहा कि उस व्यापारी ने मेरे साथ विश्वासघात किया है। इस कथन पर राजा क्रोधित हो गया और व्यापारी को कठोर दण्ड देने को तत्पर हो गया। तब मृग ने पुनः राजा से व्यापारी के लिए दया याचना की। मृग के इस दया भाव से राजा अचम्भित हो गया और तब उसे यह ज्ञान हुआ कि यह सुनहरा मृग कोई और नहीं बल्कि स्वयं भगवान बुद्ध ही हैं।

सत्रहवीं गुहा में ही महाहंस जातक कथा का भी चित्रण किया गया है जिसका रंग - विन्यास असाधारण कोटि का है। यही कारण है कि कुछ विद्वान इस चित्र को अजन्ता का एक प्रतिनिधि भित्तिचित्र मानते हैं। इस भित्ति चित्र में सम्राट अपने दरबारियों से घिरा हुआ बैठा अंकित किया गया है। इस चित्र में प्रायः सभी रंगों का उपयोग हुआ है तथा रंगों को सन्तुलित करने के लिए सहयोगी एवं विरोधी दोनों ही रंग विधानों का प्रयोग सुन्दर तालमेल के साथ किया गया है।

सिंहलावदान की कथा का भी चित्रण इसी गुहा से किया गया है। सिंहल नामक व्यक्ति सिंहक नामक व्यापारी का पुत्र था जो अपने सैंकड़ों साथियों के साथ व्यापार करने के लिए निकला। लेकिन दुर्भाग्यवश मार्ग में समुद्री तूफान के कारण उसका सर्वस्व नष्ट हो गया। किसी तरह वह सभी व्यापारी मित्रों के साथ एक द्वीप पर पहुँचा जहाँ उन लोगों को नरभक्षियों ने क्रूरतापूर्वक हत्या करके उन्हें खा डाला। लेकिन सिंहल सफेद हय को ले जाने के कारण बच गया। यह हय कोई और नहीं बल्कि स्वयं बोधिसत्व थे। अन्ततः सिंहल ने नरभक्षियों से घोर युद्ध के पश्चात् उन्हें परास्त कर दिया और वहाँ से नरभक्षियों को भगा दिया। इसी कहानी का चित्रण बड़े ही कलात्मक ढंग से इस गुहा में किया गया है।

'दिव्य गायक' नामक चित्र भी सत्रहवीं गुहा का एक प्रसिद्ध चित्र है। इस चित्र में दिव्य गायकों का चित्रण अत्यन्त कुशलता के साथ चित्रित किया गया है। इस चित्र में आकाश में विचरण करते हुए गन्दर्भराज को अप्सराओं एवं परिचारकों के साथ चित्रित किया गया है। गन्धर्व की मुख मुद्राओं में गतिमयता व गान में लीनता के अंकन में चित्रकार ने अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की है। गन्धर्वराज के सिर पर मुकुट शोभायमान है तथा उनकी हस्त मुद्राएँ नृत्य के भाव में उठी हुई बनी हुई हैं। गन्धर्वराज की आकृति सभी मानवाकृतियों के मध्य में प्रमुखता के साथ अंकित की गयी है। गन्धर्वराज के वाम हस्त की ओर वाली नारी आकृतियों को हाथ में करताल वाद्य लिए हुए चित्रित किया गया है। इन नारी आकृतियों की आकृति इतनी मनोहारी है कि देखते ही बनता है। इनके चहरे पर कोमलता के साथ अद्भुत सौन्दर्य का दर्शन होता है। वेणु बजाती हुई नारी आकृति भी बड़ी कमनीय बनायी गयी है जिसका कटि प्रदेश अत्यन्त क्षीण है और बालों का सुन्दर जूड़ा बना रखा है। गन्धर्वराज के दाहिनी ओर वाली पुरुष आकृति के दाहिने कन्धे पर कोई वाद्य है जिसे वह अपनी दाहिनी हथेली से सहारा दिए हुए है। इस पुरुषाकृति को गन्धर्वराज को एकटक निहारते हुए चित्रित किया गया है। सभी आकृतियों के पृष्ठ भाग में बादलों के साथ वनस्पतियों का भी अंकन किया गया है। इस चित्र में गान व वाद्य तथा नृत्य में लयात्मकता के साथ वस्त्रों को भी लहराते हुए चित्रित किया गया है मानो ये वस्त्र भी नृत्य की मुद्रा में अंकित किए गए हों। इस प्रकार अजन्ता के चितेरों ने दिव्य गायक नामक चित्र के अंकन में पूरी सावधानी बरतते हुए अपनी उत्तम कला कौशल का परिचय दिया है।

इस गुहा में जातक कथाओं का भी अंकन बड़े ही भावपूर्ण ढंग से किया गया है। जातक कथाओं की श्रेणी में एक प्रसिद्ध चित्र है जिसे महाकवि जातक नाम दिया गया है। इस कथा में महाकवि का भावपूर्ण चित्रण किया गया है। कथानुसार — मंदाकिनी के तट पर एक आम्र वृक्ष था जिस पर असंख्य कपि एक साथ रहते थे और आम्र फल का स्वाद चखा करते थे। बोधिसत्वरूपी महाकपि के मना करने पर भी एक कपि ने एक आम्र को मंदाकिनी में फेंक दिया। यह मीठा स्वादिष्ट आम्र एक निषाद के द्वारा बनारस के सम्राट तक जा पहुँचा। इस स्वादिष्ट आम्र की सुगन्ध से सम्राट का मन पुलकित हो उठा और राजा ने उस आम्र वृक्ष के पास जाने की योजना बनायी तथा अपने दल-बल के साथ उस आम्र वृक्ष तक पहुँचा। सम्राट को देख सारे कपि भयभीत हो गये। तब महाकपि बोधिसत्व ने सबके प्राणों की रक्षा हेतु एक उपाय खोज निकाला और वे वृक्ष की एक शाखा को पकड़कर दूसरे वृक्ष की ओर कूद पड़े। इस प्रकार उन्होंने अपने शरीर का पुल बना लिया और सभी कपियों को अपनी पीठ द्वारा पार उतर जाने को कहा। कपियों के समूह में बोधिसत्व का भाई भी था, जिसका अपने बड़े भाई से मित्रवत् व्यवहार नहीं था, बल्कि व्यवहार में कटुता बनी रहती थी। कपिरूपी उसी भाई ने इस मौके का लाभ उठाकर, बोधिसत्व की पीठ पर जोर से कूद पड़ा, जिसके कारण बोधिसत्व को बहुत गहरा आघात लगा। इस पर बनारस के सम्राट ने मोह व दयावश उनका उपचार किया। तब महाकपिरूपी बोधिसत्व ने सम्राट को धर्मोपदेश देकर अपने प्राणों का त्याग कर दिया। इस जातक कथा का चित्रण शुंगकालीन तोरणद्वारों में भी बड़ी स्पष्टता एवं कुशलता के साथ किया गया है।

इसी गुहा में 'बेसन्तर जातक' कथा वाला चित्र भी बड़ा मर्मस्पर्शी बन पड़ा है। इस कथा के अनुसार, एक वानप्रस्थ सम्राट से एक ब्राह्मण भिक्षु सम्राट के इकलौते अल्पवयस्क शिशु को माँगते हुए चित्रित किया गया है जिसे सम्राट बड़ी खुशी के साथ दानस्वरूप अपने इकलौते प्रिय बेटे को देने को तैयार है। इस चित्र में ब्राह्मण का चेहरा बड़ा ही डरावना बनाया गया है जो अपने बड़े-बड़े दाँत दिखाकर राजा से भीख माँग रहा है। बोधिसत्व अपनी कुटिया में बैठे हुए चित्रित किए गए हैं जिनके मुखमण्डल पर किसी प्रकार का मोह-बन्धन दिखाई नहीं पड़ता है। बुद्ध बिना किसी क्षोभ के कुटिल ब्राह्मण का भिक्षा स्वरूप बेटे को माँगना स्वीकार करते दिखाए गए हैं। बोधिसत्व के समीप ही उनका इकलौता पुत्र बैठा हुआ चित्रित किया गया है। बालक के मुखमण्डल पर भी आतुरता के भाव दिखायी पड़ते हैं जो अपने पिता के वचनों का पालन करने के लिए तत्पर बैठा है। इस चित्र को चित्रकार ने बड़ी भावुकता के साथ अंकित किया होगा। इसी कारण यह चित्र भावनाप्रधान चित्रों की श्रेणी में रखा जा सकता है। यह चित्र मन पर करुणा की गहरी छाप लगा देने में पूर्ण सक्षम माना गया है।

जातक कथाएँ सबसे अधिक सत्रहवीं गुहा में ही चित्रित की गयी हैं। बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित विभिन्न घटनाओं के साथ-साथ बुद्ध के पूर्व जन्म से सम्बन्ध रखने वाली कथाओं का भी यहाँ कुशलतापूर्वक चित्रण प्राप्त होता है। जातक कथा जन-सामान्य में अति लोकप्रिय थीं और इस प्रकार का चित्रण एक ही गुहा में मिलना अत्यन्त ही रोचक बात है। ऐसा अन्यत्र मिल पाना सम्भव नहीं है। जातक कथाओं के अंकन में चित्रकारों ने गहरी रुचि दिखलायी है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- कला अध्ययन के स्रोतों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- प्रागैतिहासिक भारतीय चित्रकला की खोज का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  3. प्रश्न- भारतीय प्रागैतिहासिक चित्रकला के विषयों तथा तकनीक का वर्णन कीजिए।
  4. प्रश्न- भारतीय चित्रकला के साक्ष्य कहाँ से प्राप्त हुए हैं तथा वे किस प्रकार के हैं?
  5. प्रश्न- भीमबेटका क्या है? इसके भीतर किस प्रकार के चित्र देखने को मिलते हैं?
  6. प्रश्न- प्रागैतिहासिक काल किसे कहते हैं? इसे कितनी श्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं?
  7. प्रश्न- प्रागैतिहासिक काल का वातावरण कैसा था?
  8. प्रश्न- सिन्धु घाटी के विषय में आप क्या जानते हैं? सिन्धु कला पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  9. प्रश्न- सिन्धु घाटी में चित्रांकन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  10. प्रश्न- मोहनजोदड़ो - हड़प्पा की चित्रकला को संक्षेप में समझाइए।
  11. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता की कला पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  12. प्रश्न- जोगीमारा की गुफा के चित्रों की विषयवस्तु तथा शैली का विवेचन कीजिए।
  13. प्रश्न- कार्ला गुफा के विषय में आप क्या जानते हैं? वर्णन कीजिए।.
  14. प्रश्न- भाजा गुफाओं पर प्रकाश डालिये।
  15. प्रश्न- नासिक गुफाओं का परिचय दीजिए।
  16. प्रश्न- अजन्ता की गुफाओं की खोज का संक्षिप्त इतिहास बताइए।
  17. प्रश्न- अजन्ता की गुफाओं के चित्रों के विषय एवं शैली का परिचय देते हुए नवीं और दसवीं गुफा के चित्रों का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- अजन्ता की गुहा सोलह के चित्रों का विश्लेषण कीजिए।
  19. प्रश्न- अजन्ता की गुहा सत्रह के चित्रों का विश्लेषण कीजिए।
  20. प्रश्न- अजन्ता गुहा के भित्ति चित्रों की विशेषताएँ लिखिए।
  21. प्रश्न- बाघ गुफाओं के प्रमुख चित्रों का परिचय दीजिए।
  22. प्रश्न- अजन्ता के भित्तिचित्रों के रंगों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- अजन्ता में अंकित शिवि जातक पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  24. प्रश्न- सिंघल अवदान के चित्र का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  25. प्रश्न- अजन्ता के चित्रण-विधान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  26. प्रश्न- अजन्ता की गुफा सं० 10 में अंकित षडूदन्त जातक का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  27. प्रश्न- सित्तन्नवासल गुफाचित्रों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  28. प्रश्न- बादामी की गुफाओं की चित्रण शैली की समीक्षा कीजिए।
  29. प्रश्न- सिगिरिया की गुफा के विषय में बताइये। इसकी चित्रण विधि, शैली एवं विशेषताएँ क्या थीं?
  30. प्रश्न- एलीफेण्टा अथवा घारापुरी गुफाओं की मूर्तिकला पर टिप्पणी लिखिए।
  31. प्रश्न- एलोरा की गुहा का विभिन्न धर्मों से सम्बन्ध एवं काल निर्धारण की विवेचना कीजिए।
  32. प्रश्न- एलोरा के कैलाश मन्दिर पर टिप्पणी लिखिए।
  33. प्रश्न- एलोरा के भित्ति चित्रों का वर्णन कीजिए।
  34. प्रश्न- एलोरा के जैन गुहा मन्दिर के भित्ति चित्रों का विश्लेषण कीजिए।
  35. प्रश्न- मौर्य काल का परिचय दीजिए।
  36. प्रश्न- शुंग काल के विषय में बताइये।
  37. प्रश्न- कुषाण काल में कलागत शैली पर प्रकाश डालिये।
  38. प्रश्न- गान्धार शैली के विषय में आप क्या जानते हैं?
  39. प्रश्न- मथुरा शैली या स्थापत्य कला किसे कहते हैं?
  40. प्रश्न- गुप्त काल का परिचय दीजिए।
  41. प्रश्न- “गुप्तकालीन कला को भारत का स्वर्ण युग कहा गया है।" इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  42. प्रश्न- अजन्ता की खोज कब और किस प्रकार हुई? इसकी प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख करिये।
  43. प्रश्न- भारतीय कला में मुद्राओं का क्या महत्व है?
  44. प्रश्न- भारतीय कला में चित्रित बुद्ध का रूप एवं बौद्ध मत के विषय में अपने विचार दीजिए।

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